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LS03 संतमत का शब्द-विज्ञान || संतों का शब्द-संबंधी विशेष ज्ञान से संबंधित पद्य की विस्तृत व्याख्या

LS03 संतमत का शब्द-विज्ञान

     प्रभु प्रेमियों  ! लालदास साहित्य सीरीज के तीसरे पुस्तक के रूप में  "संतमत का शब्द-विज्ञान "  संतों के शब्द-संबंधी विशेष ज्ञान से संबंधित पद्य "अव्यक्त अनादि अनन्त अजय अज ..." की विस्तृत व्याख्या की पुस्तक है. आज इसी पुस्तक के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे.

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संतमत का शब्द विज्ञान
संतमत का शब्द-विज्ञान


संतों का शब्द-संबंधी विशेष ज्ञान से संबंधित पद्य

     प्रभु प्रेमियों  !  ' संतमत का शब्द - विज्ञान ' नाम्नी प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने संतों के शब्द - संबंधी विचारों को गागर में सागर की भाँति समाविष्ट करने का प्रयत्न किया है । शब्द ज्ञान अपार है । विद्या की अधिष्ठात्री देवी श्रीसरस्वतीजी के विषय में लिखा गया संस्कृत का यह श्लोक ध्यान देने के योग्य है -
नादाब्धेस्तु परं पारं न जानाति सरस्वती । 
अद्यापि मज्जनभयात् तुम्बं वहति वक्षसि ॥ 

     अर्थात् नादरूपी समुद्र की सीमा का पार सरस्वतीजी भी नहीं जानतीं ; इसीलिए आज भी डूबने के भय से वे हृदय के पास तुम्बे को धारण किये हुई हैं । 

     संसार में कोई भी क्रिया कम्पन के बिना नहीं हो सकती । सृष्टि के पूर्व अनन्तस्वरूपी परमात्मा ने अपनी अपरंपार शक्तिमत्ता से एक शब्द पैदा किया , उसमें जो कम्पन था , उसी से सारी सृष्टि का विकास हुआ । वेद , उपनिषद् , संतवाणी , बाइबिल , कुरान आदि प्रायः सभी धर्मग्रंथ इस बात को स्वीकार करते हैं कि शब्द से सृष्टि हुई है । यह शब्द संसार में ' ओम् ' कहकर विख्यात है । अंतस्साधना के द्वारा जिसकी सुरत इस शब्द को पकड़ती है , वही परमात्मा का साक्षात्कार कर पाता है । यह आदिशब्द परमात्मा का स्वरूप , अलौकिक , नित्य , सर्वव्यापी , निर्मल चेतन , निर्गुण , अव्यक्त और अकथनीय है । इस शब्द की बड़ी महिमा है । 

न नादेन विना ज्ञानं न नादेन विना शिवः । 
नादरूपं परं ज्योतिर्नादरूपी परो हरिः ।। 

     अर्थात् नाद के बिना ज्ञान नहीं हो सकता ; नाद के बिना कल्याण ' नहीं हो सकता ; नाद ही श्रेष्ठ ज्योतिस्वरूप है और नादरूप ही हरि हैं । 

     परमाराध्य सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज अपनी पदावली के १२६ वें पद्य में कहते हैं कि यह आदिशब्द गुरु का स्वरूप , शान्ति प्रदान करनेवाला और अनुपम अर्थात् अद्वितीय है -

' गुरु ही सो शब्दरूप , शान्तिप्रद औ अनूप । '

      इस पुस्तक में मुख्य रूप से इसी आदिशब्द के विविध गुणों केविषय में लिखा गया है । सच पूछा जाए , तो इस पुस्तक में ' महर्षि मँही पदावली ' के पाँचवें पद्य ( अव्यक्त अनादि अनन्त अजय अज ... ) की विस्तृत व्याख्या की गयी है । 

     पुस्तक में आये जिस पद्यात्मक उद्धरण में केवल पद्य संख्या का निर्देश किया गया है , वह उद्धरण ' महर्षि मँहीँ - पदावली ' का समझा जाना चाहिए । 


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LS03 संतमत का शब्द-विज्ञान || संतों का शब्द-संबंधी विशेष ज्ञान से संबंधित पद्य की विस्तृत व्याख्या LS03  संतमत का शब्द-विज्ञान  ||  संतों का शब्द-संबंधी विशेष ज्ञान से संबंधित पद्य की विस्तृत व्याख्या Reviewed by सत्संग ध्यान on दिसंबर 02, 2021 Rating: 5

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