संतमत दर्पण
' संतमत : दर्पण ' पूज्य शंकर बाबा के द्वारा यह पुस्तक लिखित है । यह पुस्तक अपने आपमें निराली है । पाठक इसे पढ़कर बहुत लाभान्वित होंगे । संतमत सत्संग में संबंध में उन्हें पूरी जानकारी मिलेगी । संतमत सत्संग का इतिहास , संतमत की साधना - पद्धतियाँ , संतमत की आचार संहिताएँ , संतमत में गुरु की महत्ता आदि निबंध इसमें संकलित हैं । यह पुस्तक धर्म प्रेमियों के बीच लोकप्रिय है ।
संतमत दर्पण पुस्तक की महत्वपूर्ण प्राक्कथन
प्रस्तुत पुस्तक ' संतमत : दर्पण ' संतमत व संतमत सत्संग के कुछ विषयों पर मेरे द्वारा लिखित लघु निबंध है । बचपन से ही आध्यात्मिक चिंतन हमारा स्वभाव रहा है । जो - जो बातें मन में उत्पन्न होती रहती थीं , उन बातों को सत्संग में सुनकर बड़ी प्रसन्नता होती थी । साधु - जीवन में आने पर ध्यान भजन में बाधा होनेवाले कार्यों जैसे - गायन , वादन , प्रवचन , पुस्तक लेखन आदि में कदापि रुचि नहीं रही । परमाराध्य गुरु महाराज ऐसे महापुरुष सतलोकवासी पूज्य रामानन्द स्वामीजी महाराज की संगति दे दिये , जिनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य परमात्म - साक्षात्कार था । उनके परिनिर्वाण के पश्चात् पुस्तक प्रणयन हेतु पूजनीया माताजी का आदेश होने पर भी साधना में विघ्न होने के कारण बहुत दिनों तक उनकी आज्ञा का पालन मेरे द्वारा नहीं हो पाया । माताजी के कई बार कहने के प्रभाव से गुफा में ध्यान करते समय एक दिन बहुत गुनावन हुआ ।
गुफा से निकलने पर पूज्य स्वामी छोटेलालजी महाराज के पास जाकर उन्हें यह बात सुनायी और अपनी लाचारी भी व्यक्त की । उन्होंने परामर्श दिया कि पुस्तक लेखन भी संस्था , समाज के उपकार का कार्य है । जिसे अपना क्षति सहनकर भी किया जा सकता है , तत्पश्चात् समय निकालकर संतमत के कुछ विषयों को अनमने ढंग से लिपिबद्ध करने लगा , उसी लेख को माताजी के आज्ञा - पालनार्थ पुस्तक का रूप दिया जा रहा है ।
गुरु महाराज की महती कृपा से ही यह कार्य मेरे द्वारा सम्पन्न हो पाया है । अनुभवज्ञान से हीन , साधनाविहीन , गुरु - आज्ञा का अक्षरशः पालन करने से हीन , लेखनकला - ज्ञान से विहीन , भाषा - ज्ञान से हीन होने के कारण प्रस्तुत पुस्तक में अनेक प्रकार की त्रुटियाँ रह गई होंगी ।
विद्वान् पाठकों से विनम्र प्रार्थना है कि समस्त प्रकार की त्रुटियों को नजरअंदाज कर केवल भाव को ही ग्रहण करने की कृपा करेंगे । अंत में परम दयालु परमाराध्य गुरु महाराज , दीक्षा गुरु सतलोकवासी पूज्य स्वामी रामानंदजी महाराज तथा माता - पिता के चरणों में यह पुष्प समर्पित करते हुए उन सभी गुरु जनों की चरणधूलि का आकांक्षी -शंकर
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सुख की खोज
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' सुख की खोज ' लेकर संतमत के पाठकों के बीच आनेवाले हैं । इस पुस्तक में इन्होंने बताया है कि हमारे दुःखों का कारण क्या है और उस कारण का निवारण कैसे हो सकता है ? वास्तव में इच्छा ही हमारे दुःखों का कारण है । जब कोई इच्छा हमें पकड़ती है , तो अपनी पूर्ति कराये बिना नहीं छोड़ती । जबतक इच्छा पूरी नहीं हो पाती , तबतक मनुष्य तनाव का अनुभव करता रहता है । इच्छा - पूर्ति के मार्ग में किसी के द्वारा बाधा पहुँचायी जाने पर हममें क्रोध जग जाता है । यह क्रोध ही हमारे विनाश का कारण बनता है । जिस इच्छा को पकड़कर हम जन्म - जन्मान्तर से संसार में रहते आ रहे हैं , उसे छोड़ पाना आसान नहीं । उसे छोड़ पाने की इच्छा रखनेवाले को विचार और योगाभ्यास - दोनों का सहारा लेना पड़ता है । यदि कोई मनुष्य जिस समय अपनी सारी इच्छाओं को छोड़ देगा , उसी समय वह मुक्त हो जाएगा - ऐसा संतों का कथन है । इसमें इन्हीं सब बातों के विशेष रूप से चर्चा की गई. ∆
मैं कौन हूँ ?
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"मैं कौन हूँ ?" पुस्तक में आत्मस्वरूप - विषयक ज्ञान पर ही चर्चा की गयी है । ' आत्मा ' , ' आत्मा : उसके बंधन तथा मुक्ति ' , ' आत्मा , प्रकृति तथा परमात्मा ' , ' आत्मा का स्वरूप और लक्ष्य ' आदि ही प्रस्तुत पुस्तक का विचारणीय विन्दु है । आत्मानुभूति ही वस्तुतः धर्म है । अतः आत्मा के स्वरूप का ज्ञान प्राप्त कर उसकी प्रत्यक्ष उपलब्धि के द्वारा अज्ञान के बंधनों से मुक्त होना ही मानव - जीवन का चरम लक्ष्य है ।∆
शंकर स्वामी के अन्य साहित्य
1. Upnishad darshan ₹240/-
2. Vishaw Dharm darshan- ₹300/-
3. Santmat Darsahan ₹1500/-
ये सभी पुस्तकें उपलब्ध है.
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