साधक-पीयूष
प्रभु प्रेमियों ! "साधक-पीयूष" का अर्थ है कि साधना के माध्यम से अमृत या मोक्ष की प्राप्ति करना। आध्यात्मिक साधना में लगे हुए हैं और पीयूष (अमृत) को पाने का प्रयास कर रहे हैं। साधक साधना करते हुए कभी-कभी उदास हो जाते हैं और साधना छोड़ देते हैं। ऐसे ही साधकों को पुनः जागने वाला जो वाक्य है, विचार है, अनुभव वाणी है, उन्ही बानियों को 'साधक-पीयूष' नामक इस पुस्तक में रखा गया है। अंतस्साधन के द्वारा ही आंतरिक अनुभूतियाँ एवं जीव का परम कल्याण होता है। कुछ ऐसे भी साधक हैं, जिन्हें अधिक दिनों के पश्चात् भी आंतरिक अनुभूतियाँ नहीं हो रही हैं । इसका खास कारण है असंयमित जीवन व्यतीत करना। कुछ ऐसे भी साधक हैं, जिन्हें यह भी पता नहीं है कि संयम किस चिड़िया का नाम है। साधकों को संयम की जानकारी, रहनी-गहनी की जानकारी हो, -जिससे जप-ध्यान करने में कुछ मन लगे, कुछ आंतरिक अनुभूति भी हो। इसी उ्देश्य से साधकों के लिए कुछ संयम की बात इस 'साधक पीयूष' पुस्तिका में लिखा गया है।
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निराश और उदास साधक को साधना में प्रेरित करनेवाले अनमाेल वचनों से युक्त पुस्तक का नाम 'साधक-पीयूष' का परिचय
हमलोग शरीर नहीं, शंरीरधारी अविनाशी तत्त्व जीवात्मा हैं। इसी को बोल-चाल की भाषा में चेतन आत्मा, शरीरस्थ आत्मा, आत्मा, जीव आदि कहा गया है। यह जीवात्मा सृष्टि के आदिकाल से कर्म और काल के चक्कर में पड़कर अपने असली स्वरूप को भूल जाने के कारण अनेक प्रकार के शरीरों को धारण एवं छोड़ने के दुसह दुःखों को भोग रहा है। इन दुःखों से सदा के लिए मुक्ति मिल जाए, इसके लिए परम प्रभु परमात्मा ने असीम अनुकम्पा करके जीव को मनुष्य-शरीर प्रदान किया है। यह मनुष्य-शरीर इतना पूर्णं है कि इसमें ईश्वर-भक्ति करने की सभी सुविधाएँ मौजूद हैं। यह भक्ति गरीब-अमीर, सभी मनुष्य-शरीरधारी कर सकते हैं। दूसरे शरीरधारी जीव में यह ज्ञान नहीं है कि ईश्वर की भक्ति करके मुक्ति प्राप्त्त कर सके। मनुष्य-शरीर के अतिरिक्त अन्य शरीर को भोग-प्रथान और मनुष्य-शरीर को कमं (योग)-प्रधान बतलाया गया है। मनुष्य-शरीरधारी जीव को मुक्त प्राप्त करने के लिए अवसर प्रदान किया गया है। अगर इस अवसर का लाभ नहीं उठा सकें, तो उस जीव को बरबस भोग-प्रधान शरीर में जाना पड़ जाएगा या भेज दिया जाएगा। अतः मानव शरीर में भक्ति करके में आलस नहीं करना चाहिए। इन्हीं सब बातों की चर्चा इस पुस्तक में विशेष रूप से किया गया है ।
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BS05. साधक-पीयूष || निराश और उदास साधक को साधना में प्रेरित करनेवाले अनमाेल वचनों से युक्त पुस्तक
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
दिसंबर 03, 2025
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