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सद्गुरु महर्षि मँहीँ महाराज के भाव और आचरण को देखकर कई लोग यह कहते थे कि उनको "ईश्वर प्राप्त" हो गया है। इस पर वे अपने प्रवचनों में कहा करते थे कि संतों का विचार ही उनका प्राणधार है, जिसमें वे इतने दृढ़ हैं कि कोई उन्हें डिगा नहीं सकता। यह उनकी अपने मार्ग के प्रति अटूट आस्था को दर्शाता है। उन्होंने अपने महाप्रयाण से पहले अपने शिष्यों को आश्वस्त किया था, "मैं मोक्ष नहीं चाहता हूँ, तुम लोगों के उद्धार के लिए पुनः आऊँगा"। यह उनके शिष्यों के प्रति गहरे प्रेम और कल्याण की भावना को प्रदर्शित करता है। उनकी दिव्य शक्तियों से जुड़े संस्मरण भी मिलते हैं, जिनमें बताया गया है कि वे कभी-कभी दूसरों के मन की बातों को जानकर उसका जवाब देते थे और लोगों के दुखों को दूर करते थे। एक प्रवचन में उन्होंने अपने एक सत्संगी का उदाहरण दिया, जो धान की कटाई के समय अपने परिवार के साथ मिलकर स्तुति और सत्संग करता था। इसके माध्यम से उन्होंने घर-घर में सत्संग और सामूहिक उपासना के महत्व पर बल दिया, ताकि समाज में ईश्वर भक्ति बढ़े और लोग अच्छे कर्मों में संलग्न हों। सद्गुरु महर्षि मँहीँ महाराज ने अपने जीवन में कठोर तपस्या की। संस्मरण बताते हैं कि उनके आश्रम में भक्तजन साधना करते थे और वे स्वयं ध्यान योग में लीन रहते थे। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्चे गुरु की दीक्षा से व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है। ये संस्मरण महर्षि मेंहीं के सादे जीवन, उच्च विचारों और संतमत के सिद्धांतों के प्रति उनके समर्पण को स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं। ( और जाने )
price/INR150.00(Mainprice₹150-20%=120.00)
off/-20%
size/21.5cm/14.5cm/1.1cm/L.R.U.
लालदास साहित्य सीरीज की अगली पुस्तक LS35. गुरदेव के मधुर संस्मरण






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