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पिंड माहिं ब्रह्मांड
प्रभु प्रेमियों ! पुस्तक दो खण्डों में विभाजित है । दोनों खण्ड इसी जिल्द में हैं । प्रथम ' पिण्ड ' खण्ड में पिण्ड के मूलाधार से लेकर आज्ञाचक्र तक के षट् चक्रों का वर्णन है और दूसरे ' ब्रह्माण्ड ' खण्ड में ब्रह्माण्ड के सहस्रदल कमल से लेकर शब्दातीत पद तक के सात दर्जों का वर्णन है । इस पुस्तक में और भी अनेक ऐसी बातें हैं , जो नक्शे की बातों से संबंधित तो हैं ; परन्तु नक्शे में नहीं हैं । सन्त - साहित्य के लगभग समस्त पारिभाषिक शब्द इस पुस्तक में व्याख्यायित होकर आ गये हैं ; अनेक नये तथ्य भी उभरकर सामने आये हैं । व्याख्या आदि से अन्त तक सरल भाषा में प्रस्तुत की गयी है , जो बड़ी ही संतोषजनक और सर्वत्र सबल प्रमाणों से संपुष्ट है | पुस्तक की बातों को अच्छी तरह हृदयंगम कर लेने पर ' सत्संग - योग , चारो भाग ' , ' महर्षि मेँही - पदावली ' और अन्य संत साहित्य के मर्म को देखने - समझने की एक शेष विचार दृष्टि प्राप्त हो जाएगी । इस पुस्तक के अध्ययन से यह भी विदित हो जाएगा कि कुछ लोगों ने लौकिक भावों के वशीभूत होकर किस तरह सन्तमत के सत्स्वरूप को विकृत करने का प्रयत्न किया है और उस सत्स्वरूप को उजागर करने में गुरुदेव की कैसी भूमिका रही है । सामान्य जिज्ञासु भी यदि पुस्तक को क्रमिक रूप से मनन - पूर्वक दो - चार बार पढ़ लेंगे , तो वे इसे पूरी तरह आत्मसात् कर सकने में सक्षम हो जाएँगे । इसे अच्छी तरह समझ लेने पर सत्संग - प्रेमियों को बौद्धिक संतृप्ति तो होगी ही , साथ - ही - साथ आध्यात्मिक साधना के अन्तर्मार्ग पर अग्रसर होने के लिए उन्हें समुचित दिशा - निर्देश भी प्राप्त हो जाएगा । ( ज्यादा जाने )
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size/21.5cm/14.5cm/1.1cm/L.R.U.







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