अपने गुरु की याद में
प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज की याद में हमलोग उन्हें स्मरण करते हैं कि वे सच्चे आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं, जिन्होंने ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग दिखाया है। हमलोग उनकी कृपा और उनके द्वारा बताए गए ईश्वर-स्मरण, सत्य स्वरूप के ध्यान और आंतरिक प्रकाश व नाद की खोज जैसे साधनाओं के महत्व को जाना हैं। उनकी शिक्षाओं के अनुसार गुरु का स्मरण और ईश्वर भक्ति से जीवन को पवित्र कर, दुखों को मिटाकर आत्मा को परमात्मा से मिलाते हैं। प्रस्तुत पुस्तक "अपने गुरु की याद में" में उपरोक्त बातों की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की गई है । जिससे की पुस्तक का नाम सार्थक हुआ है । आइये इस दुर्लभ धर्मग्रंथ का एक परिचय प्राप्त करें--
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सद्गुरु महर्षि मेँहीँ के संस्मरणों, उपदेशों, साधनाओं, जीवनी और 32 रंगीन चित्रयुक ग्रंथ 'अपने गुरु की याद में' का एक परिचय
प्रभु प्रेमियों ! इस धर्म ग्रंथ में ईश्वर का स्मरण, उनकी आंतरिक खोज, सद्गुरु का स्मरण, सत्संग, भक्ति, गुरु की महिमा, सच्चे सद्गुरु को प्राप्ति, गुरु का मार्गदर्शन इत्यादि विषयों पर भरपूर चर्चा की गई है। जिस की पुस्तक अत्यंत जीवनोपयोगी हो गई है। मनुष्य जीवन को सार्थक करने में यह पुस्तक अत्यंत महत्वपूर्ण है। पुस्तक की प्रामाणिकता इसलिए भी बढ़ गयी है; क्योंकि पूज्यपाद के प्रवचनों के आशिक उल्लेख है। विभिन्न साधनात्मक तथ्यों को उजागर करने की कोशिश की गयी है। भक्तवत्सल की कृपादृष्टि सूर्य की रश्मियों की तरह सब पर समान रूप से सदैव बरसती रही है। इसे अनेक मार्मिक संस्मरणात्मक प्रसंगों के माध्यम से गुरुसेवी भगीरथ दासजी ने प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। पूज्यपाद की अपरंपार लीलाओं का गायन-वाचन कौन कर सकता है? फिर भी भगीरथ दासजी ने कोशिश की है कि उनकी कुछ प्रभावी झलक दिखाई जाय। 'अश्वत्थामा मुक्तो भवः ' एक ऐसा प्रसंग है, जो महाभारत के अभिशप्त अश्वत्थामा की पीड़ा-मुक्ति/शाप मुक्ति की अमरगाथा है। इससे स्पष्ट होता है कि गुरु महाराज जैसे अकाल पुरुषों पर देश- काल का बंधन कथमपि नहीं होता और वे भूतकाल के अपराधों के भोग और अनागत की आशकित पीड़ा से जीवों को मुक्त करने में समर्थ होते हैं। वर्तमान तो क्या भूत और भविष्य भी उनको करतलगत होता है। कई बार पूज्यपाद साधारण- सा प्रतीकात्मक दंड देकर व्यक्तियों को अपराधों से होनेवाले कठोर दंड से मुक्त कर दिया करते थे। ऐसे अनेक प्रसंगों को श्रीभगीरथ दासजी ने अपनी पुस्तक में समेटा है। पूज्यपाद के लीला-संवरण के समय का विवरण अत्यन्त मार्मिक है। यह प्रसंग ऐसा है, जिससे अधिकांश लोग अपरिचित हैं। इसमें जो संदेश है. प्रेरणा है, चेतावनी और जीवन का सारतत्त्व है, वह इतिहास के पन्नों पर अमिट छाप छोड़नेवाला है। इसमें 32 रंगीन पृष्ठों पर सद्गुरु महर्षि मेँहीँ महाराज एवं पूज्य बाबा के अनेकों रंगीन चित्र हैं, जिससे पुस्तक अत्यंत आकर्षक हो गई है। तो आइये इस पुस्तक का सिहावलोकन करें--
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"BS04. 'महर्षि मेँहीँ चैतन्य चिन्तन" है। साधक अपने मन और इंद्रियों को बाहरी जगत से समेटकर अपने भीतर एकाग्र करता है। शब्द और नाद की आंतरिक साधना में, साधक कथित तौर पर आंतरिक प्रकाश (ज्योति) और आंतरिक ध्वनि (नाद) का अनुभव करता है। इस पुस्तक में आपने सत्संग - योग, चतुर्थ भाग में जो सद्गुरु महाराज द्वारा गद्य में लिखित अनुभवगम्य वाणी है, उसको बड़े ही सरल ढंग से समझाया है।। जय गुरु महाराज !!! इस पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी के लिए 👉 यहां दबाएं ।
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